कहीं खो गया

जो कभी खुली किताब हुआ करता था, आज खुद को खामोशियों में दफ़न कर लिया।

जो कभी डरता था खो ना दूं उसे, आज आज़ाद पंक्षियों की तरह छोड़ दिया।

जो कभी सवालों पर सवाल पूछ लिया करता था, आज खैरियत पूछना भूल गया।

कब तक यूहीं देखते रहोगे तुम?

कब तक मौत का तमाशा देखते रहोगे तुम?

कब तक???

क्यों उनके इतिहास से अनजान बन रहे हो तुम?

इतिहास गवाह है तुम्हारे ही मुल्क को टुकड़े- टुकड़े करके चल दिए,

हां इतिहास गवाह है तुम्हारे ही अपनों को अपनों से लड़ा कर चल दिए,

क्यों? क्यों अब भी ख़ामोश हो तुम,

उनके ज़ाहिलपन से रू – ब – रू हो तुम।

हां तुमने सब देखा है, उनकी कट्टरता को, उनके विरोध को, उनकी चालों को,
फिर भी क्यों खामोश हो तुम?

कब तक यूंही देखते रहोगे तुम?

कब तक अपने ही ज़मीन में पालते रहोगे तुम।

वो निडरता हैं डरेंगे नहीं,
शहीद हो जाएंगे इस महामारी से,

लेकिन जिस थाली में खाते हैं उसी में करेंगे छेद,

हां तुम इस तमाम मसले से वाक़िफ हो,

फिर भी कब तक यूंही देखते रहोगे तुम????

हाल – ए – दिल अपना तुम्हें बता नहीं सकते,

तुम खुद को दूर रखते हुए भी पास रहते हो मेरे,
समन्दर जैसा दिल और ख़्वाब आसमां को छूते हैं,

तुम खुद को भी खो दोगे मोहब्बत – ए – इश्क़ में, हां तुम दिल के बहुत करीब हो मेरे,

भले ही तुमने अपनी दुनिया बना ली हमें,
लेकिन तुम्हारे साथ के सपने अधूरे हैं मेरे,

तुम ज़िंदगी के सफ़र में हो अब तक साथ, लेकिन पूरी ज़िन्दगी भर ये लम्हा नसीब नहीं मेरे,

सफ़र – ए – ज़िन्दगी😘

हां कहना चाहती थी मैं तुझसे, कि तेरा हाथ थाम लूं अपने हाथों में,
तुझे ले लूं अपने बाहों में,
तेरे दर्द को मैं अपना बना लूं, ज़िन्दगी के दो कदम साथ चल लूं, हां और कहना चाहती थी कि
अपनी खुशियां तेरे साथ बांट लूं,
लेकिन,
लेकिन नहीं पता क्यूं?
मेरी ये ख्वाहिशें मेरे लबों में आकर ठहर सी जाती हैं,
ऐसा लगता है जैसे कि मेरे ये एहसास लहरों की तरह तुझे छू कर चली जाती हैं,
और तू किनारों का मज़ा लेते देख यूहीं मुस्कुराता रहता है।
कब तुझे ये लहरों के छूने का सुकून मिलेगा, कब तू भी किनारों से हट कर लहरों का मज़ा लेगा,
हां ये सब कहना चाहती हूं तुझसे लेकिन,
लेकिन नहीं पता क्यों मेरी ये ख्वाहिशें मेरे लबों में आकर ठहर सी जाती है।

चोला माटी के हे राम

‘मां’ तो आख़िर ‘मां’ होती है। इस संसार में मां को भगवान का दर्ज़ा दिया गया है। मां ही वो शख्स है जो दु:ख को छिपाकर अपने बच्चे को संसार की सारी खुशियां देती है। मां के लिए बच्चों की खुशी ही संसार की सबसे बड़ी खुशी होती है, जब मां का यही सुख उससे दूर चला जाता है तो उस दु:ख की कल्पना करना अत्यंत ही कठीन हो जाता है।

छत्तीसगढ़ का एक ऐसा दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। जिसे जानकर आपकी आंखे नम हो जाएंगी। ऐसा सिर्फ आपने कहानियों और फिल्मों में ही देखा होगा। यह मामला राजनांदगांव के ममता नगर में रहने वाली एक मां का है।

एक लोक कलाकार पूनम तिवारी ने अपने बेटे की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए अपनी तकलीफ़ों को दरकिनार कर दिया। पूनम तिवारी ‘दाउ मंदराजी अलंकरण’ नाम के सम्मान से सम्मानित लोक गायिका हैं।

पूनम तिवारी के बेटे सूरज तिवारी जो 30 वर्ष के थे। सूरज तिवारी रंग-छत्तीसा नामक लोकमंच के संचालक और संगीतकार थे।

सूरज तिवारी बचपन में पिता के साथ नाटक ‘चरणदास चोर’ को देखने जाते थे। हबीब तनवीर के साथ काम किये थे, नाटक ‘आगरा बाज़ार’ का सैकड़ों शो किये और चंदैनी गोंदा व अन्य लोककला मंचों पर प्रस्तुती देते थे। सूरज तिवारी हृदय रोग से पीड़ित थे। बीते 26 अक्टूबर को उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था फिर 2 नवंबर की सुबह उनकी मृत्यु हो गई।

सूरज तिवारी की अंतिम इच्छा यही थी कि उनकी अंतिम यात्रा में मां पूनम तिवारी ‘चोला माटी के हे राम’ का गीत गा कर विदाई करे। लेकिन सूरज तिवारी की एक और अंतिम इच्छा थी कि वे छत्तीसगढ़ी में शहीद वीर नारायण सिंह पर फिल्म तैयार करें। इसके लिए वे कुछ दिनों से संघर्षरत थे।

सूरज तिवारी की लोकगीत वाली इच्छा को पूरी करने के लिए मां ने दिल पर पत्थर रखकर जब बेटे के अर्थी के सामने जीवन की सच्चाई पर आधारित लोकगीत ‘चोला माटी के हे राम, एखर का भरोसा’ गाकर उन्हें विदाई की, तब वहां मौज़ूद लोग अपनी भावनाओं को नहीं रोक पाए, सभी की आंखें नम हो गई। कला जगत से जुड़े सूरज के दोस्तों ने तबला, हारमोनियम बजा कर इस लोकगीत में मां का साथ दिया।

पूनम तिवारी अपने बेटे की शव यात्रा में यह लोकगीत गाकर अपने बेटे सूरज की अंतिम इच्छा पूरी की और सभी की आंखें नम कर दी।